09-Apr-2022 کرونا وبا ایک طنزیہ نظم
कोरोना महामारी
मुसीबत में भाई बहन और मां हैं।
जनाज़े कहीं हैं कहीं अरथियां हैं।।
कलम पर सुखन पर भी पाबंदियां हैं।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
वतन के है चेहरे पे लाखों खराशें।
हुकूमत के लीडर बहाने तराशें।।
हैं गंगा के पानी में लाशें ही लाशें।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
ये केंची की सूरत रवां चल रही है।
बुझी ज़हर में ज़बां चल रही है।
हवा नफरतों की यहां चल रही है।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
मलाई गुनाहगार को मिल रही है।
यहां वोट बदकार को मिल रही है।
वज़ारत तड़ी पार को मिल रही है।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
गरीबों की होती हैं गुरबत में मीतें।
शरीफों की हर पल शराफत में मोतें।
यहां हो रही हैं हिरासत में मोतें।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
मुगल दौर के सब निशानों से दिक्कत।
ज़बां ज़ोर को सब ज़बानों से दिक्कत।
यहां हो रही है अज़ानों से दिक्कत।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
हैं इक कब्र में कितनी लाशें गिनाओ।
जो गंगा में बहती हैं लाशें दिखाओ।
मिरे देश के राष्ट्र वादी को लाओ।
" मिरे देश के राष्ट्र वादी कहां हैं।।"
کورونا وبا
مصیبت میں بھائی بہن اور ماں ہیں
جنازے کہیں ہیں کہیں ارتھیاں ہیں
قلم پر سخن پر بھی پابندیاں ہیں
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں ہیں"
وطن کے ہیں چہرے پہ لاکھوں خراشیں
حکومت کے لیڈر بہانے تراشیں
ہیں گنگا کے پانی میں لاشیں ہی لاشیں
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں ہیں"
یہ قینچی کی صورت رواں چل رہی بے
بجھی زہر میں ہر زباں چل رہی بے
ہوا نفرتوں کی یہاں چل رہی بے
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں
ملائی گنہگار کو مل رہی ہے
حمایت بھی بدکار کو مل رہی ہے
وزارت تڑی پار کو مل رہی ہے
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں ہیں"
غریبوں کی ہوتی ہیں غربت میں موتیں
شریفوں کی مہنگی عدالت میں موتیں
یہاں ہو رہی ہیں حراست میں موتیں
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں ہیں"
مغل دور کے سب نشانوں سے دقت
زباں زور کو سب زبانوں سے دقت
یہاں ہو رہی ہے اذانوں سے دقت
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں
ہیں اک قبر میں کتنی لاشیں گنائو
جو گنگا میں بہتی ہیں لاشیں دکھائو
جنہیں ناز ہے ہند پر ان کو لائو
" مرے دیش کے راشٹر وادی کہاں ہیں"